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देहारादून के डी.ए.वी. (पी.जी.) कॉलेज में 2022 में सम्पन्न हुए छात्र संघ चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर सोनाली नेगी चुनी गई। सोनाली की जीत से कभी डी.ए.वी. कॉलेज में अपना दबदबा रखने वाले स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस.एफ.आई.) को फिर से ताकत मिली है।
इस बार सोनाली ने न सिर्फ उपाध्यक्ष पद पर विगत कई सालों से जीतते आ रहे स्टूडेंट ग्रुप के प्रत्याशी को मात दी बल्कि ए.बी.वी.पी. के प्रत्याशी को भी इस पद पर जीत से कोसों दूर रखा। उपाध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में एस.एफ.आई. की सोनाली नेगी को 1572 मत मिले, जबकि दिवाकर ग्रुप के अमन भटनागर को 1016 मत, ए.बी.वी.पी. के वाशु शर्मा को 887 मत, स्वाति को 138 मत और सोनल को 145 मत मिले।
एस.एफ.आई. के प्रत्यासी की यह जीत राजनीतिक तौर पर बड़ी जीत मानी जा रही है और इसके अपने मायने निकाले जा रहे हैं। एक तरफ यह छात्र छात्राओं के बीच वामपंथ की विचारधारा की बढ़ती स्वीकार्यता को दिखा रहा है, वही यह छात्र गुटों (ग्रुपों) की अप्रासंगिकता भी सिद्ध कर रहा है। जहां एक तरफ शांत से दिखने वाले एस.एफ.आई. के काडर वोट में लगातार हो रही बृद्धि को प्रदर्शित कर रहा है तो वहीं वैकल्पिक राजनीति के तरफ बढ़ते रुझान को भी दिखा रहा है। एस.एफ.आई. के प्रत्यासी सोनाली नेगी की इस जीत के और मायने निकले जा सकते हैं।
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सकारात्मक राजनीतिक का सूत्रपात
उत्तराखंड राज्य के विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में छात्र राजनीति तेजी से बदल रही है। स्लोगन और झूठे दिखावे की जगह अब मुद्दों ने लेना शुरू कर दिया है। अच्छी बात यह है कि छात्र इसमें रूचि दिखा रहे हैं। सोनाली नेगी के जीत को सकारात्मक राजनीतिक का सूत्रपात माना जा सकता है।
सोनाली के रूप में एस.एफ.आई. ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि छात्र राजनीति में एक मिसाल कायम की। ए.बी.वी.पी. और दूसरे संगठनों के मुकाबले एस.एफ.आई. ने सीमित संसाधानों में चुनाव प्रचार किया। संगठन के कार्यकर्ताओं ने प्रिंटेट सामग्री के बजाय हाथ के बने पर्चे बांटे। और फिर भी जीत दर्ज की। एस.एफ.आई. के प्रदेश महासचिव हिमांशु चौहान का कहन है कि जहां दूसरे छात्र संगठनों ने शक्ति प्रदर्शन के नाम पर जुलूस निकाले और फिजूलखर्ची की, वहीं एस.एफ.आई. ने शिक्षा बचाओ-डीएवी बचाओ रैली निकाल कर कॉलेज के मुद्दों पर चुनाव प्रचार किया।
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पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
सोनाली ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा राजकीय इंटर कॉलेज, भगवती, चमोली (2017 में) से प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज स्नातक और स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र) की शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान में सोनाली डी.ए.वी. कॉलेज से ही लॉ की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।
सोनाली नेगी मूलतः चमोली जिले की रहने वाली हैं। वह नारायणबगड़ के मौणा की रहने वाली हैं। सोनाली सुदूर पर्वतीय क्षेत्र से देहरादून आकार अध्ययन कर रहे छात्रों की समस्याओं से बखूबी परिचित हैं और कॉलेज परिषर का माहौल पठन पाठन के अनुकूल हो इस आवश्यकता को बेहतर समझती हैं।
पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से सोनाली एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से आती हैं। उनके पिता श्री फते सिंह जी एक सामान्य किसान हैं और उनकी माता श्रीमति राधा देवी जी गृहणी हैं। सोनाली मध्यम वर्गीय परिवार के युवाओं की प्राथमिकताओं से भली भांति परिचित हैं। उनके स्वर में सुदूर पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं का संघर्ष स्पष्ट सुनाई देता है।
राजनैतिक पृष्ठभूमि
यद्यपि सोनाली की कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं है परंतु उनकी राजनैतिक समझ गहरी है। शिक्षा एवम् छात्रों से संबंधित विभिन्न समस्याओं पर स्पष्ट सोंच और उन समस्याओं के परिपेक्ष में शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षित सुधार लाने की इच्छा ही उनकी राजनैतिक रूप से सक्रियता का कारण बना। सोनाली कहती हैं कि वह 2017 में डी.ए.वी. कॉलेज आयीं, जहां उनका संपर्क वामपंथी विचारों के छात्रों से हुआ। यहीं वह एस.एफ.आई. से जुड़ीं और तब से ही छात्र हितों के लिए संघर्ष (स्टूडेंट एक्टिविज्म) कर रही हैं। वामपंथ से प्रेरित सोनाली के विचारों में प्रखरता है और युवाओं के लिए संघर्ष का जज्बा है।
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राजनैतिक दृष्टिकोण और प्रतिबद्धता
वर्तमान में सोनाली नेगी डी.ए.वी. कॉलेज के छात्रसंघ में उपाध्यक्ष हैं और एस.एफ.आई. के देहरादून जिला की सचिव हैं।
सोनाली कहती हैं कि छात्र राजनीति में सक्रियता की प्रेरणा और वैचारिक प्रखरता उन्हें संगठन की विचारधारा से मिली। वह मानती हैं कि लगातार पाँच साल तक छात्रों के बीच में रहीं और उनके लिए संघर्ष किया। इसी का नतीजा रहा कि उन्हें छात्रसंघ चुनाव में जीत मिली।
छात्रसंघ की नेत्री रही सोनाली मानती हैं कि आज की छात्र राजनीति में धनबल और बाहुबल का ज़ोर है। वह चाहती हैं कि छात्र राजनीति मुद्दों और विचारों पर केन्द्रित होना चाहिए। इसके लिए छात्र राजनीति को और सहज किया जाना चाहिए और छात्र राजीनीति में छात्राओं की भूमिका बढ़नी चाहिए। वह मानती हैं कि छात्राओं की भूमिका बढ़ने से स्वतः ही छात्र राजनीति में धनबल और बाहुबल का प्रयोग कम होगा। यद्यपि सोनाली मानती हैं कि यह इतना आसान भी नहीं है। जब कोई लड़की छात्र राजनीति में सक्रिय होती है तो उसे कई तरह के विरोधों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले तो उसे अपने घर में ही संघर्ष करना पड़ता है। समाज में भी उसे कई जगह पर संघर्ष करना पड़ता है। वह कहती हैं कि लड़की होने के नाते मुझे भी पारिवारिक और सामाजिक विरोधों (संघर्षों) का सामना करना पड़ा, परंतु लड़कियों की भागीदारी बढ़ने से उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी और बहुत से विरोध खुद कमजोर पड़ने लगेंगे।
सोनाली कहती हैं कि महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में अब धीरे धीरे छात्राओं की भागीदारी बढ़ रही है। सोनाली कहती हैं, ‘पहले लड़कियां छात्र राजनीति में कम रुचि रखती थीं लेकिन अब उनका प्रतिनिधित्व काफी बढ़ा है’। यह शुभ संकेत है। अब लड़कियां चुनाव लड़ भी रही हैं और छात्र राजनीति में सक्रिय भी हैं। वह दिन दूर नहीं जब छात्रसंघ चुनाव में सेंट्रल पैनल की पांच सीटों पर छात्राओं कि जीत होगी। कई महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में यह प्रयोग हुए हैं और सफल भी रहे हैं।
सोनाली मानती हैं कि पुस्तकालय, प्रयोगशाला, क्लास रूम एवम कॉमन रूम (गर्ल्स एंड बॉय्ज़ कॉमन रूम), कैंटीन जैसे मुद्दे छात्रसंघ की प्राथमिकता होनी चाहिए। स्मार्ट क्लास, डिजिटल लाइब्रेरी, बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर और महाविद्यालय में प्रोफेसर की कमी चुनाव का मुद्दा होना चाहिए और छात्रसंघ की प्राथमिकता भी। वह यह भी मानती हैं कि छात्रसंघों को लगातार छात्रहित में काम करना चाहिए और इसके लिए वह अपने आप को प्रतिबद्ध मानती हैं।
सोनाली नेगी कैम्पस पॉलिटिक्स के अतिरिक्त युवाओं से जुड़े हर विषय पर स्पष्ट सोंच रखती हैं और संघर्ष का नेतृत्व के लिए प्रस्तुत रहती हैं। सोनाली कहती हैं कि अगर राजनीति हमारी शिक्षा की दिशा और दशा तय कर सकती है, तो हमे भी जरूरत है, हम स्वयं राजनीति की दिशा तय करें।
हाल के दिनों में उन्होने बहुचर्चित अंकिता हत्याकांड के विरोध में जन आंदोलन का नेतृत्व किया साथ ही भर्ती घोटालों के विरोध में हो रहे आंदोलन का भी नेतृत्व किया। इस सिलसिले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वह कहती हैं कि भविष्य में भी वह छात्र और युवाओं के मुद्दों पर संघर्षरत रहेंगी।
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भविष्य की योजना
वर्तमान में सोनाली नेगी लॉ (विधि स्नातक) की छात्रा हैं। वह भविष्य में एक कुशल अभिवक्ता बनना चाहती हैं। साथ ही वह महिलाओं के सशक्तिकरण और मानवाधिकार के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम करना चाहती हैं।
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